पिता के स्वर्गवासी हो जाने के कारण छोटी उजम बहन की शादी के अवसर पर होने वाली विधि की जवाबदारी बड़े भाई के ऊपर आई थी। बहन को पिता की गैरहाजरी बिल्कुल लगे नहीं, इस हेतु से भाई ने उसकी शादी का कार्य बड़े ठाठ-बाट से किया। बहिन की विदाई बेला में भाई ने बहन का 9 गाड़ी भरकर विविध सोने-चांदी के आभूषण वस्त्र आदि सभी वस्तुएँ दहेज में दी।
भाई ने वे 9 गाड़ियाँ बहन को बताई और पूछा कि इससे तुझे संतोष है ना? तुझे पिताजी की कमी न लगे इसका मैंने बराबर ध्यान रखा है। अतः बोल, कुछ कमी तो नहीं है? परन्तु बहन तो उदास ही रही। उसके मुंह के ऊपर उदासी थी, यह देखकर भाई ने पुनः पूछा- बहिन और भी कुछ बढ़ाने जैसा लगता हो तो बोल।
यह सुनकर बहिन को विचार आया कि भाई को मेरे संबंध में गलत-फहमी हो रही है, अतः उसे दूर करना चाहिए। अतः बहिन ने कहा भाई-इन 9 गाड़ियों में तूने ऐसी सामग्री भरी है कि जिनको भोगने से संसार बढ़े। हम तो वीतरागी परमात्मा के अनुयायी हैं, भोग सामाग्री से अपने संसार-दुख का निर्माण होता है। मुझे तो इसमें से कुछ नहीं चाहिए। हां भाई! यदि तुम मेरी प्रसन्नता की इच्छा रखते हो तो एक ही कार्य करो। विराट जिनालय का निर्माण करो। यही है मेरी दहेज, इसी में है मेरी प्रसन्नता। यह सुनकर भाई ने दसवीं गाड़ी मंगवाई, वह खाली थी। उसमें एक चिट्ठी रखी और ऊजम बहिन का जैन मन्दिर बनाकर तैयार कराया।