मुनिराज एक गाँव से गुजर रहे थे, तो एक जिज्ञासु किसान ने प्रश्न किया, “महाराज! साधु और असाधु में क्या अन्तर है? क्या हमारे जैसे गृहस्थ भी साधु की संज्ञा पा सकते हैं?”
मुनिराज ने उत्तर दिया, “जिसने स्वयं को साध लिया, वास्तविक साधु वही है। असाधु तो वह है, जो केश और वेष से साधु बनने का प्रपंच रचता हैं। यदि तुमने अपने आप को साध और सुधार लिया, तो निश्चय ही तुम गृहस्थ होते हुए भी साधु हों”